गुरुघासीदास सिद्ध महापुरुष थे ।वे निरन्तर गतिमान रहे ।अपनी ९४ वर्ष की आयु तक सक्रिय और अंत में एकान्तवाश और लोक मान्यता में अछप ( अन्तर्ध्यान ) हो गये।
वे अशांत और आक्रोश से भरे लोगों को शांत और समृद्धशाली किए।संशय ग्रस्त लोगों को निशंक किए।उनका क्रांति बाहर का नहीं आंतरिक रहा और वे लोगों के मन हृदय और बुद्धि को परिवर्तन कराए। आत्महीनता में आत्मविश्वास पैदा किए। वे अशांत कैसे होन्गे। हां जब वे जनमानस की पीड़ा शमन हेतु चिन्तन मनन करते तब उद्वेलित और विह्वल हो आशांत होते तब धौरां वृछ का सधन छांव और भीषण गर्मी में हरे भरे लहलहाते तेन्दू वृछ का शीतल छांव उन्हें शांत करते ।
एक उद्वेलित और अशांत व्यक्ति कभी जीवन दर्शन प्रस्तुत नहीं कर सकते।
उनकी क्रांतिकारी छवि बनाना अव्यावहारिक और हल्का पना हैं।
हां क्रांतिकारी छवि गुरुबालकदास का हैं। और वे इसलिए शहादत भी दिए।
गुरुघासीदास के कोई शत्रु नहीं वे शत्रु के हृदय को जीत लेने वाले महान आध्यात्मिक महापुरुष हैं। नाहक उन्हे क्रांतिकारी बनाए जा रहे हैं।
वे जागरण खासकर नवजागरण के अग्रदूत हैं। सतनाम आन्दोलन से अधिक प्रभावशाली व चिर प्रासंगिक नाम या प्रवृत्ति वाले शब्द सतनाम जागरण हैं। गुरुघासीदास के कार्य क्रांति करना नहीं अपितु जनमानस को सुषुप्तावस्था से जागृत कराना रहा हैं।
जनम जनम का सोया मनवा शब्दन मार जगा दिजो हो वाली कहावत चरितार्थ होते हैं।
इसलिए वह नायक नहीं सद्गुरु हैं। जिनके चरणों में हजारों नायक न्योछावर हैं।
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