बुद्ध का मृत देह था उसे जला दिए गये और अस्थियाँ केश आदि संरछित कर लिए गये ताकि ऐसा विलक्षण व्यक्ति होने का साछ्य रहे।शायद यह उनके इच्छानुसार ही हुआ। वे निब्बान पाए ... अनगिनत स्तुप बने अवशेष रखे और उनकी पूजा अर्चना शुरु हो गये यानि कि शव साधना मृतक पूजा.....
कबीर मगहर में प्राण त्यागे पर देह फूल में बदल गये हिन्दू मुस्लिम उन्हे बाट लिए .... और अनगिनत मठ बने यहां भी समाधि व मठ में चादर पोशी होने लगे शव व मृतक पूजा जारी ही हैं ...
गुरुघासीदास १८५० के बाद नहीं दिखे वे कहा गये कि मृत्यु हुए कि किसी जानवर या सडयंत्र आदि का शिकार अब भी अग्येय हैं। केवल जनश्रुति है कि वे बंगोली में एक और सहिनाव घासीदास के साथ समाधि लिए ...
लोग इसे सच नहीं मानते
कुछ लोग कहते हैं कि बलौदाबाजार लवन के बीच वे दिखे .... उसे तलाशने / मनाने महानदी तट तक परिजन गये ..पर नहीं मिला ... क्या वह नदी में प्रवाहित हो गये या किसी तरह वहां से निकल अपने प्रिय जन्म स्थल गिरौदपुरी गये कि साधना स्थल छाता पहाड़ जनश्रुति है कि वे वहां जाकर ही ध्यान करते शरीर त्यागे जिसे कोई न देख पाए इसे ही अछप या अन्तर्ध्यान जैसे अलंकृत शब्द से जनमानस व्यवहृत किए। छाता पहाड की उस कंदरा को सतलोकी गुफा कहते हैं। और संयोगवश वह तीन भागो में विभक्त हैं। बीच में जैतखाम स्थापित हैं। लाखो सर वहां श्रद्धा से झुकते हैं।
पर उनके देह न मिलने पर कोई अन्तेष्टी क्रिया नहीं हुए ।अन्यथा एक समर्थ राजा बालकदास अपने पिता के कुछ न कुछ अन्तेष्टी करते ... और लाखो श्रद्धालु जरुर उनमे जुटते पर ऐसा नही हुआ।
उनकी प्रयुक्त सामाग्री खडाउ सोटा कंठी जरुर उनकी पुत्री सहोद्रामाता ने संरछित किए हैं( आज वही उनके अप्रतिम साछ्य है जो भंडारपुरी के समीप ग्राम डुम्हा के दीवान परिवार /गुरु पुत्री सहोद्रामाता के पास सुरछित है।) वह पुरानी होन्गे और जो धारण किए रहे हो वह न मिला या हो सकता हैं। वह वही हो( भले देह न मिला )और उनकी ही प्रतिकार्थ श्रद्धा वश पूजा होते हैं। क्योकि गुरुघासीदास असधारण थे उन्हे साधारण करने कोई अशोभनीय बाते नहीं की जा सकती ।न करना चाहिए ...
यानि की तीन महापुरुषो की अंत और उनके अवशेष से यह समझा जाय कि जो विलछण व असाधारण होते हैं। उनके संदर्भ में विशिष्ट क्रिया या अलंकृत वृतान्त बनते ही हैं।
।।सतनाम ।।
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