Thursday, May 24, 2018

श्रृटि स्रोत

           जब श्रृष्टि रचित हुई अनेक जीव जन्तु आए कलान्तर मानव हुआ धीरे धीरे उनका क्रमिक विकास हुए ध्वनि उच्चरित किए शब्द आया तब कही जाकर सतपुरुष जैसे सुन्दर नाम की रचना हुई।
     हालाकि यह हमे आपको सुन्दर और महिमामय लगते हो पर दुसरे भाषा देश या संस्कृति वालो को नहीं ।उनहे अपना अपना इजाद नाम यथा गाड खुदा रब ईश्वर भगवान अच्छा लगता है। पर यह नाम सतनामियों को अच्छा नहीं लगता ।मतलब इससे से भी सिद्ध होते हैं। सभी विचार दर्शन नाम भाषा शब्द कला कशौल क्रियेटिव हैं। गढित व सृजित हैं। पहले से कोई नहीं ।पहले से गैस निराकार रुप  फिर ठंडी हुई तो जल साकार रुप फिर उनसे जीवन   अमीबिया बैक्टीरिया  वायरस आक्टोपस मछली कच्छप  आदि  जलचर थलचर नभचर व उभयचर अस्तित्व मान हुए ।
           संसार सतनाम मय हो
सत श्री सतनाम

No comments:

Post a Comment