Friday, June 13, 2025

जाति न पूछो

#anilbhattcg 

सद्गुरु कबीर जयंती पर 

"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।" 

भारतीय समाज वर्ण जाति व्यवस्था से युक्त हैं ।भले यहां साधु यानि सज्जन, ज्ञानी,सिद्ध लोगों की जाति नहीं पूछने की कबीर साहब की नसीहत हैं। परंतु बिना जाति पूछे दो अनजान लोगो के बीच न जान पहचान  होते न ही लोकाचार!  शादी ब्याह और जीवन निर्वाह तक भी नहीं होते। लेकिन इसी जातिप्रथा और वर्ण व्यवस्था के कारण सदियों से दमन शोषण भी जारी हैं। 
   आजादी के 75 वर्ष बीत जाने और प्रभावी संविधान के बाद भी जाति से उत्पीड़ित वर्ग के हितार्थ उन्हें लाभान्वित करने जाति जनगणना हो रहे हैं इससे अपेक्षित बदलाव की संभावना हैं। नि:संदेह साधु से ज्ञान ही पूछिए पर मतदाता और हितग्राहियों से जाति पूछना ही पड़ेगा तभी तो उनके ऊपर न्याय कर पाएंगे क्योंकि अब तक जाति न पूछने के कारण कोई दूसरा उसका लाभ लेते आ रहे हैं। 

तो भैये कबीर साहब से बिना क्षमा याचना किए कि उनकी बातें शत प्रतिशत सत्य हैं ,हम ज्ञानियों से जाति नहीं पूछेंगे बल्कि  जाति विहीन समुदाय की ओर अग्रसर हैं। लेकिन जो जाति के नाम पर छल प्रपंच करके किसी के हक अधिकार को छीन रहे हैं।  कोई जाति के दर्प में तो कोई शर्म से जीते आ रहे हैं। जन्मना जाति गत उच्च नीच की खाई बनी हुई है। भेदभाव परिव्यप्त हैं ऐसे में समानता लाने कुछ दशकों तक प्रयोग करके नवाचार करे और जाति जनगणना कर ले कोई हर्ज नहीं। देर आए दूरस्थ आए टाइप इस कार्य का स्वागत होना चाहिए।
  सद्गुरु कबीर जयंती की हार्दिक बधाई।
            सत कबीर,सतनाम

Sunday, June 8, 2025

डॉ अनिल भतपहरी सचिव राजभाषा आयोग

डॉ अनिल कुमार भतपहरी सहायक संचालक उच्च शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़ शासन को  सचिव,छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग  के पद पर  संस्कृति विभाग में तीन वर्षों की प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ किया गया था।
इन तीन वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने कोरोना काल में लगभग हाशिए पर चले आयोग को पुनर्स्थापित किया। हालांकि इस दौरान राजभाषा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की मनोनयन नहीं हुआ। परन्तु वे राज्य के साहित्यकारों कलाकारों प्राध्यापको ,के साथ और मंत्री जनप्रतिनिधि एवं विभाग के अधिकारी से समन्वय बनाकर जो भाषाई और साहित्यिक क्षेत्र में कार्य किया वह महत्वपूर्ण और रेखांकित करने योग्य हैं।

खासतौर पर आयोग का कार्य को प्रमुखता से तीन भागों में विभाजित कर एक्शन प्लान बनाया और उसे जिला समन्वयकों की उपस्थिति में चरणबद्ध तरीके से  शेड्यूल के अनुसार संस्कृति मंत्री  और संचालक के संज्ञान  में  कार्यालय स्थापना दिवस 14 अगस्त 2022 अनुमोदित करवाकर प्रकाशन प्रशिक्षण और आयोजन का त्रिस्तरीय कार्यक्रम का पूरा ढांचा तैयार किया गया।

1आयोजन: 

 फिर तत्क्षण सुदूर जशपुर से बीजापुर और रायगढ़ से डोंगरगढ़ तक राज्य के सुदूर सीमावर्ती क्षेत्र से लेकर मध्य भाग में खासकर  जशपुर, रायगढ़, बीजापुर, अंबिकापुर बालोद, महासमुंद, जगदलपुर जिला संभाग स्तरीय  साहित्यकार सम्मेलन कराया। गया जिसमें संबंधित जिला/संभाग के अधिकतर साहित्यकारों ने स्वस्फूर्त भाग लिया और उनमें नवीन उत्साह का संचार हुआ। विशिष्ट कार्य किए हुए वरिष्ठ साहित्यकारों को आयोजन में सम्मान करवाकर उन्हे विशिष्ट महत्ता प्रदान किए।

A त्रिदिवसीय राज्यस्तरीय सम्मेलन 
जनजातीय भाषा एवं साहित्य के विविध आयाम शहीद स्मारक भवन रायपुर 2021

B त्रिदिवसीय लोक साहित्य समारोह साइंस कॉलेज रायपुर 20 22

C सातवें प्रांतीय सम्मेलन होटल इंटरनेशनल बेबीलोन रायपुर 2023
   
उक्त तीनो राजकीय सम्मेलन में 1500 साहित्यकारों की गरिमामय उपस्थिति रही हैं। यह तीनो कार्यक्रम अत्यंत सफल और लोकप्रिय रहा। इनके स्मारिका भी प्रकाशित किए गए है।

2प्रकाशन:

   छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास और संवर्धन हेतु उन्होंने राज्य के लगभग 100 से अधिक साहित्यकारों की पुस्तक को संवाद से प्रकाशित करवाकर और उन्हें राज्य के जिला ग्रन्थालय और महाविद्यालय में निःशुल्क भेजकर एक कीर्तिमान स्थापित किया। इस तरह छत्तीसगढ़ी पुस्तक राज्य के प्रायः सभी जिला ग्रंथालयों में उपलब्ध हुआ। इसके साथ ही उन्होंने। राजभाषा आयोग के गतिविधि और राज्य के सभी बोली भाषा को प्रश्रय देने हेतु त्रैमासिक " सुरहुत्ती" नामक संग्रहणीय पत्रिका आरम्भ हुई जो आगे चलकर शोध कार्य के लिए महत्वपूर्ण होगी।

3प्रशिक्षण:
आयोग के उक्त दो महत्वपूर्ण कार्यों के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ी को राजकाज में व्यवहृत करने हेतु जिला मुख्यालय के अधिकारी कर्मचारी एवं महानदी भवन मंत्रालय एवं संचालनालय  इंद्रावती भवन में चरण बद्ध तरीके से प्रतिवर्ष प्रशिक्षित किया गया। जिसके अधिकारी कर्मचारी की उपस्थिती एवं उत्साह महत्वपूर्ण रहा। राजनांदगांव , बेमेतरा, बालोद, कोंडागांव, मानपुर मोहला। कांकेर जैसे जिला में अधिकारी कर्मचारी को प्रशिक्षित किया गया।

4   सम्मान: 
राज्य स्तरीय मुख्यमंत्री सम्मान छत्तीसगढ़ी भाषा के साथ अन्य राजकीय भाषा बोली सदरी लरिया कुड़ुख हलबी भतरी गोंडी आदि विकास और साहित्य सृजन हेतु महत्वपूर्ण साहित्यकारों को मान मुख्यमंत्री के हाथों उनके निवास पर सम्मानित किए गए।
राजकीय रामायण समारोह में छत्तीसगढ़ी और राज्य के अन्य भाषा बोली में लिखे गए रामकथा के महाकवियों और साहित्यकारों का राजकीय सम्मान आयोग के सौजन्य से संस्कृति विभाग द्वारा किया गया।

5मानक शब्दकोश एवं व्याकरण निर्माण समिति का गठन 

राज्य के विभिन्न लब्ध प्रतिष्ठित 12 सदस्यीय भाषा विंदो और साहित्यकारों की समिति बनाई गई और 13 13 अक्षरों को बताकर वृहत्तर शब्दकोश निर्माण कराए जा रहे है। प्रथम चरण पूर्ण हो चुका है और पांडुलिपि प्राप्त हो गई है जिसका टाइपिंग भी आरम्भ हो चुका है। 
जब मानक शब्दकोश और वृहत्तर व्याकरण बन जाएगा तब नियमानुसार आठवीं अनुसूची में छत्तीसगढ़ी को शामिल करने की दावा भाषा निदेशालय में प्रस्तुत किया जा सकेगा। इन सबके लिए पहली बार गंभीरतापूर्वक कार्य किया गया। और उसके अपेक्षित परिणाम आने लगा भी था।छत्तीसगढ़ी पहले से अधिक शहरी और शैक्षिक संस्थानों और कार्यालयों में व्यवहृत होने लगें हैं। 


इस तरह तीन वर्षों के कार्यकाल उपलब्धि से भरा रहा।

Saturday, June 7, 2025

सत्यदर्शन

रविवारीय चिंतन  

    ।।सत्यदर्शन ।।
        
   प्राण तत्व को आत्मा और उसे परमात्मा का अंश तथा वे  जहाँ से वह आते हैं उसे परलोक स्वर्ग जन्नत हैवन आदि कहे गये हैं। इस हिसाब से जहां आत्मा की बात हुई कि वह आत्मवादी दर्शन में यानि कि ईश्वरवाद के अन्तर्गत हो जाते हैं।
       अनात्मवाद में आत्मा जैसी किसी चीज पर यकीन नहीं करते और वे अनीश्वरवाद में आते हैं।
मनुष्य या प्राणियों में जीवन होते हैं। ये जीव या प्राण हैं ,इसे ही आत्मवादी आत्मा कहकर तमाम मायाजाल फैलाए हुए है। इसी में प्राय: लोग उलझे हुए है जबकि वह ऐसा है नही, यह सब कल्पना मात्र है । यह प्राण या जीव  संयोग से उत्पन्न व क्षय होते हैं। इनका अस्तित्व देह से है ,इनसे परे इनका कोई अस्तित्व नहीं  है। 
      धर्म, मत ,पंथ, दर्शन मान्यताएँ प्राणियों अर्थात् जीव धारी देह के लिए हैं  खासकर मानव  प्रजाति के लिए  ।जिनके मन और मस्तिष्क होते हैं  जो सोचते विचारते है न कि‌ निर्जीव या विदेह के लिए ( इसमें पशु पक्षी को भी रखे जा सकते हैं बावजूद उनमें किंचित मात्र गुण धर्म होते हैं)। न ही जीव या प्राण के लिए, क्योंकि यह तो एक तरह से  ऊर्जा या  अदृश्य यौगिक तत्व है। जो अदृश्य अकर्ता व निरपेक्ष या तटस्थ पदार्थ की तरह है। पर इसी के नाम पर अनेक तरह के भ्रम फैला हुआ। व्यक्ति कितने भ्रमित है देह की जतन चिंता छोड़ प्राण जीव या कथित आत्मा और उनके स्वामी परमात्मा की सिद्धि  के क्या क्या उद्यम नहीं करते और   संग साथ रहने वाले देहधारियों से वैमनष्य पालता हैं। वर्चस्व के युद्ध लड़ता हैं मार-काट हिंसा फैलाते हैं। धर्म के लिए अधर्म करते हैं। सच कहे तो धर्म मत पंथ रिलिजन आदि अपनी अपनी प्रणालियों और पद्धतियों के लिए वचनबद्ध होते हैं। फलस्वरुप किसी दूसरी प्रणाली पद्धति के प्रखर विरोधी और द्वेषी हो जाते हैं।
   और सब होता है ईश्वर के नाम पर जिनका कही वजूद है भी या नहीं आज तक अज्ञेय है । इसलिए बुद्ध से लेकर गुरुघासीदास  जैसे प्रज्ञावान महापुरुषो ने उस कल्पित ईश्वर आत्मा परमात्मा उनके लोक परलोक  आदि के लिए भक्ति, उपासना, पूजा- कर्मकांड में फसे उलझे लोगों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के प्रति यहाँ तक पशु -पक्षी, वृक्ष आदि जीवधारियों के प्रति  प्रेम, परोपकार सद्भाव, सौहार्द जैसे सद्गुणों के व्यवहार करने की अप्रतिम सीख दी हैं। दोनो का दर्शन वास्तविक और सत्य है इसलिए इनके दर्शन को सत्य दर्शन या सच्चनाम / सतनाम दर्शन कहे जाते हैं।
    बुद्ध को उनके अनुयाई  सचलोचन या सच्चनाम  कहते हैं जबकि गुरुघासीदास को "सतनाम सद्गुरु" कहते हैं। 
    
                 

                                          -डाॅ. अनिल भतपहरी