Saturday, August 31, 2024

छूद्र जीवन विश्वासी हैं?

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 माना कि आभासी हैं।
पर क्या रिश्तों नातों से भरा 
यह  छूद्र जीवन विश्वासी हैं ?

कोई मन का मीत मिले
ज्ञानी गुरु सच्चा साथी मिले 
भटकते रहें ताउम्र अकेले 
पर कोई न हमराही मिले 

आना जग में अकेला और 
जाना जग से अकेला हैं 
सच कहें तो यह जग जीवन
 चार दिनों का ही मेला हैं 

तब क्यों न मगन बिताओ 
वक्त आभासी दुनियाँ में 
हर तरफ मृगमरीचिका हैं 
सम्हल कर रहना दुनियां में 

दोखा हम खाते नहीं बल्कि देते हैं 
समझने के लिए कितने ही गेटे हैं 
फिर भी आज तक मनुष्य नहीं चेते है 
बेफिक्र मौज कर रहा पर सच कब्र में लेटे हैं

Friday, August 16, 2024

जागृत सतनाम धर्म सुषुप्त क्यों?

वीरेंद्र ढीढ़ी एवम् डॉ. अनिल भतपहरी के संयुक्त विचार/ परिचर्चा 
     ।।जागृत और सुषुप्त सतनाम धर्म की दशा।।

(8/15, 11:00 PM) +91 94252 01225: जागता हुआ सतनाम धर्म।
         संगठित होता हुआ सामाजिक संगठन। 
         संगठन में शामिल होता हुआ व्यक्ति ।
         और अंगड़ाई लेता हुआ नवयुवक।
         सिर्फ मेरा व्याख्या है । विचारणीय आप सब सभी प्रबुद्ध जनों के लिए है, उपरोक्त चार बातें आज सतनामी समाज के लिए ज्वलंत है जिस पर विचार करना आवश्यक है।
        सतनाम और उनका धर्म , प्रकृति की तरह काल के बंधन से मुक्त, साफ ,स्वक्छ, निर्मल , पवित्र , अहिंसक ,सम्यक और अनंत है। हम सतनाम धर्म को अपने अपने ढंग से व्याख्या कर कर के सीमित दायरा में बांधने का काम किया है। सतनाम धर्म को इतना सीमित कर दिया गया की मनुष्य अपने मन के विचार और इतिहास को भुला दिया है और अब हम हिन्दू धर्म के अनुयाई हो गए है क्योंकि उस तथाकथित हिंदूवादी परंपरा को मानने के कारण सतनाम धर्म की व्याख्या भूल चुके है और लगभग सभी सतनामी हिन्दू लिखने लगे। हमे हिंदू धर्म के अनुयाई के रूप में सरकारी रिकार्ड में जरूर गिनते है परंतु वास्तव में हमे हिन्दू नही मानते थे  क्योंकि सतनामी पारा और हिन्दू पारा का स्पष्ट विभाजन गांव और शहर में दिखाता था और अब भी मानते है। कई बार मैने अपने लेख में लिखा हूं की सतनामी को नाई नही मिला हमारे लोग नाई बन गए , हमे हमारे संस्कार के प्रयोजन हेतु पंडित नही मिला , हमारे लोग पंडित बन गए। हम उन तमाम समस्याओं का सामना किए है जो हमारे तथाकथित हिन्दू भाइयों ने हमे सामाजिक प्रताड़ना दिया है और आज हम एक जागता हुआ सतनाम धर्म की ओर बढ़ रहे है। यह एक पक्ष है जो बीत गया और बीत रहा है , हमने दूसरा पक्ष का अवलोकन नही किया है ।
         सतनाम धर्म आज बढ़ रहा है । इसको जानने के पहले हमे हमारी मान्यता और संस्कार पर विचार करेंगे तभी तो हमे पता चलेगा कि हम सतनाम धर्म के तरफ क्यों आकर्षित हुए है और किस प्रचलित विचार और धर्म का हम पर प्रभाव पड़ा है जिससे सतनाम धर्म आज हमारे मन मस्तिष्क पर प्रभाव डाला है और हम आज उसे स्थापित करने का प्रण ले रहे है। चलो विचार करे।
           बाबा गुरु घासीदास जी का जन्म 18 दिसम्बर 1756 को हुआ। तब छत्तीसगढ़ में सतनाम धर्म या पंथ का नामोनिशान नहीं था क्योंकि हम मानते है की सतनाम पंथ या धर्म गुरु बाबा घासीदास जी का देन है। जैसे की थोड़ा बहुत ऐतिहासिक लेख कहता है की  बाबा गुरु घासीदास 6 माह के विलुप्त होने या तपस्या करने के बाद लोगो के बीच आए तब उसमे एक अद्भुत आभा चमक रहा था जो की प्रकाशित अर्थात जो होश पूर्वक जागा  हुआ व्यक्ति पर ही दिखाता है। बाबा जी लोगो के बीच आकर लोगो को शिक्षा दिए जिसमे मुख्य रूप से मूर्ति पूजा का विरोध करना था ,समानता की पाठ पढ़ाया , अंध भक्ति के प्रति लोगो को जागरूक किए । लोग उनके इस विचारधारा से जुड़ते गए जो सतनाम पंथ बाद में सतनाम धर्म के नाम से जाना गया और उनके अनुयायियों को सतनामी कहा जाने लगा। इसी विचार धारा को उनके सुपुत्र बाबा बालक दास जी ने संगठनात्मक रूप देकर भंडारी और छडीदार के रूप में आगे बढ़ाया जो की आज भी विद्यमान है। इस पर मैं ज्यादा विवेचना नही करूंगा क्योंकि भंडारी और छडीदार के व्याख्या पूर्व के लेख में कर चुका हूं।
          बाबा गुरु घासीदास जी , बालकदास जी और अमरदास जी की सतनाम धर्म 20 वी सदी के आते आते तक लगभग हिंदूवादी परम्परा में विलीन हो चुका था। कुछ मान्यता के लिए बाकी था तो वह घर में निशाना था अर्थात छोटा जैतखाम ,चौका आरती कबीर दास जी के पूजन पद्धति पर आधारित था और साधु अखाड़ा संगीत कार्यक्रम होता था जो आत्मा और परमात्मा , जन्म मरण 84 लाख योनि पर जीवन की जन्म लेने की बाते करते थे। यह प्रक्रिया चलता रहा। 
       दिनांक 18 दिसंबर 1938 को मंत्री नकुल ढीढी जी के द्वारा अपने गृह ग्राम भोरिंग में जयंती मानने और जयंती के प्रचार होने के बाद  सतनाम पंथ या धर्म अपने चरमोत्कर्ष की ओर बढ़ने लगा। इस सतनाम विचार के उन्नयन में कोई भी गुरु और स्थापित सतनामी नेता का हाथ नहीं है , केवल मंत्री नकुल ढीढी जी का संघर्ष का परिणाम है की आज सतनाम का मार्ग फल फूल रहा है।
         गुरु बाबा जी की जयंती का मानने का परिणाम यह हुआ कि सामाजिक संगठन बनाकर समाज संगठित होने है। संगठन में समाज के व्यक्ति शामिल हो कर  समाज के विकास के लिए नए नए आयाम खोज रहे है। नवयुवक गण अपना शौर्य का प्रदर्शन कर रहे है।
          इन सबके बावजूद समाज को शिक्षा के प्रति जागरूक होकर उच्च से उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहिए क्योंकि जो समाज जितना शिक्षित होगा उनका शोषण न ही धर्म के लोग करेंगे न ही समाज के तथाकथित गणमान्य लोग करेंगे न ही शासन और प्रशासन के लोग करेंगे । यही मंत्री दादा नकुल ढीढी जी का अंतिम संदेश है  अतः इस संदेश के साथ  दिनांक 16 अगस्त 2024 को उनके पुण्यतिथि पर मंत्री नकुल ढीढी जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। 

       आपका बीरेंद्र ढीढी भोरिंग और रायपुर।

 Dr. Anil Bhatpahari: सुंदर विचार भैय्या जी 

      कोई नया धर्म तब जन स्वीकार्य होता हैं जब आडंबर विहीन, सरल सहज हृदयंगम हों। सतनाम पंथ आरंभ में ऐसा ही था फलस्वरूप अनेक जातियों के लोग खींचे चले आएं और 20% जनता सतनामी बन गए। गुरु बालकदास की हत्या और उतराधिकारी वंशजो के परस्पर कलह से अनेक लोग घर वापसी और ईसाई बन गए। सतनाम धर्म केवल सिद्धान्त मे ही रहा व्यवहारिक धरातल मे उतर नहीं पाया।
     सतनामी को शासकीय दस्तावेज हिंदू तब लिखें गए जब गुरु अगमदास, महंत नयनदास महिलांग, अंजोरदास, आदि ने कांग्रेस से जुड़कर सतनामी हिन्दू महासभा गठित कर 1921 में सतनामी आश्रम संचालित किए गए। तब से पौनी पसारी सेवा के लिए समकालीन युवा वर्ग नकुल ढीढ़ी नंदूनारायण जैसे नव साक्षर लोगों ने अभियान चलाया गुरु घासीदास जयंती इसके माध्यम बना।  यह वर्ग डा अंबेडकर से जुड़े हुए थे और उनका संघर्ष और आंदोलन ही एक मात्र रास्ता था। उनके संघर्ष आज पर्यंत जारी हैं ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक और धार्मिक आयोजनों में पौनी पसारी सेवा अघोषित प्रतिबंधित हैं। हमारे  शासकीय सेवकों को किराए का मकान और घरेलू कार्य हेतु बईया ग्रामीण/ कस्बाई जगहों पर आज भी नहीं मिलती। यह अत्यंत विडंबना पूर्ण परिस्थिति हैं। कुछेक राजनेता या उच्चाधिकारियों को केवल शासकीय आयोजनों में, राजनैतिक सभा सोसायटी में या कभी कभी छठी, गृहप्रवेश या शादी विवाह में बफे स्टाइल खाने या नाश्ता कर लेने मात्र को सामाजिक स्वीकार्य या मुख्यधारा में शामिल होने का भ्रम ना समझें।
    सच तो यह हैं कि आज़ादी के बाद कांग्रेस सत्ता में आई इससे जुड़े लोग प्रभाव शाली हुए। जबकि डा अंबेडकर और आरपीआई से जुड़े लोग कभी सत्ता या प्रभावशाली पदों तक पहुंचे ही नहीं। इसलिए समाज दो राजनैतिक विचार धारा में बट कर रह गईं।
तीसरी विचारधारा आरएसएस की रही। जब दोनों विचारधारा में कुछ  महत्वाकांक्षी लोगों को महत्व नहीं मिला या नोटिस नहीं किए गए तब वे लोग जनसंघ और भाजपा की दामन थाम कर लिए।
इस तरह समाज धर्म और पंथ की अध्यात्मिक और सामाजिक संगठन से हटकर केवल राजनैतिक संगठन में जुड़ते गए पद प्रतिष्ठा की चाह लिए।
शासकीय अधिकारी/कर्मचारी जो सामाजिक सोच रखते हैं और कुछेक साधु संत लोग ही धार्मिक सामाजिक कार्यों में संलग्न हैं।
    इस तरह समाज शासकीय/ अशासकीय नौकरी वाले और राजनैतिक पार्टी वाले के रुप में चिन्हाकित हो गए हैं।
   हमारे गुरु साधु सन्त महंत भंडारी सतीदार आदि धार्मिक पदाधिकारी केवल गांवों तक सिमट कर रह गए और विविध धार्मिक कार्यों में चढ़ावे दान दक्षिणा आदि में उलझ गए हैं।
क्योंकि आज तक एक व्यवस्थित और सुसंगठित संगठन नहीं बना सकें जो पार्टियों को योग्य नेतृत्व प्रदान कर सकें।
यहां तो जो पार्टी सत्ता में आए और जी व्यक्ति मंत्री विधायक बने वहीं नेतृत्व करने लग जाते हैं।
बुद्धिजीवियों शिक्षाविदों विचारकों योजनाकारों का यहां कोई पुछ परख नहीं हैं। इसलिए अनेक उपलब्धियों के बाद भी समाज निरीह और विवश नजर आते हैं।
      जागृत सतनाम धर्म कैसे और क्यों "सुषुप्तावस्था"में हैं ।इन पर विचारक अपना विचार दे ताकि नई संभावनाओं के सूत्र तलाशा जा सके। क्योंकि मजबूत धार्मिक और सामाजिक संगठन ही वर्तमान में सत्ता के कारक  हैं। जिसमें लोक कल्याण की अनंत संभावनाएं विद्यमान हैं।

     डॉ. अनिल भतपहरी , जुनवानी रायपुर 9617777514

टीप: 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस की रात्रि 12 बजे जब देश और समाज सो गया।तब सतनाम धर्म की जागरण के लिए समाज सेवा से जुड़े दो घराने मंत्री नकुल ढीढ़ी, और महंत नंदू नारायण भतपहरी के तीसरी पीढ़ी के वीरेंद्र ढीढ़ी और अनिल भतपहरी  की रोचक बातें और परिचर्चा जरुर श्रवण कीजिए।