Wednesday, August 16, 2023

संपादकीय जून 2023

संपादकीय...

विगत अनेक वर्षों से हमारे होनहार युवाओं के लिए शासकीय अवसर के दरवाजे बंद सा हो गये थे। क्योकि आरक्षण का निर्धारण राजकीय और राष्ट्रीय सत्ता की खीचतान से उलझ सा गया था।   
      भीषण कोरोना काल  से असमान्य जीवन से उबरे तनाव ग्रस्त घर परिवार व समाज इन्ही के आशाओं का केन्द्र उनके होनहार संतति आन लाइन परीक्षा से उत्तीर्ण  नव स्नातक / स्नातकोत्तर व डिप्लोमा धारी नव युवक गण  दलीय सत्ता प्रतिद्वंद्विता की विकट  स्थिति से निरुत्साहित होकर आक्रोशित हो चले थे ।उनमें नव उत्साह व कुछ कर पाने की ललक को कायम कर पाना  परिजनों के लिए प्राय: चुनौती बन गया था । 
   तभी न्यायालीन फैसले ने राज्य के नवयुवकों में नव उत्साह का संचार किया । शासन- प्रशासन  विभिन्न विभागों की रिक्तियों के विरुद्ध अनेक पदों की विज्ञापन जारी किया फलस्वरुप  मई की चिलचिलाती धूप में उत्साहित वही नवयुवक गण च्वाइस सेंटरों ,कम्युटर केन्द्रों, रोजगार आफिसो, आवेदन देने जमा करने  में लगे है ।  अनेक पुस्तक  दुकानें  ट्युसन केन्द्र में  आने जाने लगे हैं। जहां विरानी थे वह जगह अब आबाद हो गये हैं।  नवयुवकों का उत्साह दर्शनीय हैं। ऐसा लगता है कि खुशियों सौगात ले आए ...इन लोगों का लक्ष्य दिखाई पड़ने लगा ।  इसके पूर्व किमकर्तव्यविमूढ़म टाइप देश दुनिया से बेखबर हताश -निराश  थे।
    बहरहाल होनहार और योग्य नव युवकों को उनका अपेक्षित लक्ष्य मिले इसके लिए वे विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में  जी जान से जुट जाए क्योकि असवर सदैव एक अनार सौ बीमार टाईप का रहता हैं। इसलिए प्रतिस्पर्धा के लायक बनना ही होगा । चाहे नौकरी- चाकरी हो या  उद्यम ब्यापार या फिर खेती किसानी ही सही इन सभी जगहों पर प्रतिस्पर्धा है । हमारे युवा वर्गो को चाहिए कि अंत्याव्यवसायी योजना के तरह स्वरोजगार , लघु उद्योग के लिए गंभीरतापूर्वक प्रयास करे। क्योकि सबके लिए शा नौकरिया संभव नहीं। हर कार्य उत्कृष्ट रहता है मनोयोग से करने पर प्रत्येक छोटे बडे कार्य कर सफलताओं के शिखर तक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा द्वारा पहुंचा जा सकता हैं। 

 इस  तरह से  देखे  तो मानव जीवन संघर्षमय प्रतिस्पर्धा ही  हैं। सुख शांति व सुकून पाने के लिए भी संघर्ष यानि सद्कर्म आवश्यक हैं। बिना इनके कोई रास्ता नही न ही कोई आसमानी दुवाएं या ईश्वरीय कृपा विद्यमान है  इस महामारी ने साबित भी किया हैं। 
     अन्यथा अबतक यह मान्यताएं रही है - अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम ... इस प्रवृत्ति का दिन  लद चुका है । अब तो कर्मो से ही गुजारा चल पाएगा । इसलिए भाग्यवादी के जगह कर्मवादी बने । यह सद्गुरु घासीदास बाबा के अमृत वाणी  भी है- "तय अपन बर बारा महिना के खर्चा जोर ले तब भक्ति कर  न इते झन कर।"
      इस तरह की विरासत और संस्कृति के संवाहक सतनाम पंथ और उनके अनुयाई जीवन में लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रतिबद्ध ढंग से सतत परिश्रम में लगना चाहिए चाहे पुश्तैनी खेती हो या पढाई लिखाई या उद्यम व व्यापार रुचि अनुसार इन सब कार्यो में नवयुवकों को प्रवृत्त होना चाहिए ।आर्थिक विकास अनेक विकासों के सहचरी है इसलिए आत्म निर्भरता बेहद आवश्यक हैं।
   बहरहाल ज्ञानार्जन और मनोरंजन हेतु अनेक ग्रामों में 1-2-3-5-7 दिवसीय  सतनाम सत -संगत भजन कीर्तन  का प्रचलन तेजी से चल रहा है जो स्वागतेय पहल है । इससे समाज सुसंगठित व सुसंस्कारित होते है और न ई पुरानी पीढ़ी  परस्पर सार्वजनिक जीवन व्यवहार के कदाचार सीखते -सीखाते हैं।
   गुरुघासीदास बाबा जी ने इसलिए रामत रावटी जैसे सांस्कृतिक अनुष्ठानों का प्रवर्तन किया । हमारे पास एक उच्च स्तरीय आध्यात्मिक विरासत और श्रेष्ठतम आयोजन है उनका क्रिन्वायन आयोजन समितियां गठित कर अपने आय से कुछ बचत कर परस्पर  बरार से सहयोग से सार्वजनिक व धार्मिक आयोजन करे और समाज में सांस्कृति सुरभि का प्रसारण करें।
    ऐसी उम्मीद के साथ हमारे नवयुवकों की उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए कृषक समाज को  आने वाला "बीज बौनी बर बतर बेरा "  के  बधाई ।
     जय सतनाम ....

   डा. अनिल कुमार भतपहरी 
           प्रबंध संपादक 
          सतनाम संदेश 
प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज

सतनामियों का स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागिता

।।सतनामियों का स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागिता ।।

     अंग्रेजों के देश छोड़ने और स्वतंत्रता मिलने पर जीवन के हर क्षेत्र में  आमूलचूल नव प्रवर्तन होन्गे ।इस उम्मीद के साथ सतनामियों में नव उत्साह का संचार हुआ ।फलस्वरुप  यह समुसाय अपना समय व संसाधन राष्ट्रहित के लिए  समर्पित कर दिये  । इसका साक्ष्य समकालीन समय के दास्तावेज़ो और बड़े बुजुर्गों के संस्मरणों से प्राप्त होते हैं। हालांकि इस पर अपेक्षित लेखन अन्यान्न कारणों से हो नही सका ।
   इस कड़ी में अगस्त क्रांति और भारत छोड़ो आन्दोलन पर अनुशीलन करते डां शबनूर सिद्धीकी का यह विवरण द्रष्ट्व्य हैं। 
     स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार के क्षेत्र में सतनामी आश्रम  (स्थापना  1921 हालांकि इसमे 1928 लिखा हैं। पर 1921 से संस्थान सक्रिय रहा हैं)  का सर्वाधिक महत्व रहा है । इस संस्थान का  योगदान  सदैव अविस्मरणीय ‌ रहेगा । गुरु अगदास गोसाई का रायपुर स्थित  सतनाम बाड़ा स्वतंत्रता आन्दोलन का केन्द्र था।  जहां पर पं मोतीलाल नेहरु महात्मा गांधी के विश्वस्थ  बाबा रामचंद्र जी रहकर परिक्षेत्र में स्वतंत्रता आन्दोलन को संचालित कर रहे थें। उनके साथ गुरु गोसाई सहित 72  संत- महंत जिसमें रतिराम मालगुजार गौटिया अंजोरदास कोशले , राज महंत नयनदास महिलांग , प मिलऊ दास कोसरिया  लालसाय, बरनुदास ,रामचरण  बहोर‌न , सेखवा , रेंगहू , कन्हैलाल कोसरिया , डेरहाराम घृतलहरे , रेशमलाल जांगड़े जैसे अनगिनत पुरोधा थे तो मंत्री नकूलदेव ढ़ीढ़ी महंत नंदूनारायण भतपहरी, आदि डा अम्बेडकर के विचारधारा के झंडाबरदार होकर सामाजिक क्रांति के शंखनाद कर रहे थें।
          आजादी के अमृतकाल के इस समापन काल और अगस्त क्रांति माह में ।सतनामी आश्रम संस्थान और उनसे जुड़े अनगिनत हिरावल दस्ता के प्रणम्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों व सामाजिक क्रांति के प्रणेताओं को सादर नमन ।
     जय हिन्द जय सतनाम जय छत्तीसगढ़ 

चित्र - समकालीन समय पर सक्रिय सामाजिक संस्थानों की वर्षवार सूची ।  जिसमें प्रथम स्थान पर  एंव वर्ष में सबसे प्रथम सक्रिय होने का उल्लेख हैं। डा शबनुर सिद्धीकी  का अनुसंधान अनुशीलन ।
   सौजन्य  (प्रो घनाराम साहू जी के वाल से  प्राप्त  )

किन्नर कथा : दर्द पीते खुशनसीब लोग

#anilbhatpahari 

   दर्द पीते खुशनसीब  लोग 

  हमारे पौराणिक साहित्य  में भारतीय मनीषा  यक्ष, किन्नर, गंधर्व ,देवादि के रुप में वर्णित हैं और उनकी महत्ता आज पर्यन्त  बनी हुई हैं। इनमें किन्नर ऐसा समुदाय है जिनकी दुआएं किसी देवी- देवता की दुवाओं  से कम नहीं है। चाहे अर्धनारीश्वर के रुप में रुद्रावतार हो या रामायण में वर्णित  राम वनवास के समय अयोध्या के सरहद पर प्रतिरक्षा रत किन्नर समुदाय हो महाभारत में  वृहन्नला के रुप में अर्जुन का अज्ञातवास और शिखंडी के माध्यम से महायोद्धा भीष्म पितामह का वध का छण रहा हो यह सब अविस्मरीण  प्रेरक प्रसंग हैं।
      इस के साथ -साथ ऐतिहासिक दस्तावेज़ में कुशल रणनीति कार ,योद्धा और राज- रजवाडे के अंत:पुर में सैनिक हो इनकी उपादेयता रही हैं। अलाउद्दीन खिलज़ी का सिपहसालार जिनके नेतृत्व में अपराजेय दक्कन  फतह  किया  गया ।ऐसे अनेक रोचक  दास्तान  इतिहास में मिलते हैं।
     गत दिवस  संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन के सौजन्य से तृतीय लिंग ( ट्रान्स जेंडर ) समुदाय के ऊपर आयोजित कार्यक्रम में आमंत्रित होकर गौरवान्वित हुआ।
   वहाँ पर  उनकी दशा -दिशा को देखते, विमर्श करते  उनकी परिस्थितियों को समझते हुए करुणा के सागर में गोते लगाते हुए  द्रवित और आनंदित होने का विलक्षण अनुभव से गुजरना हुआ । वर्णातीत है इन समुदाय का सानिध्य पाना । मानव समाज  उन्हें अपने अभिन्न होने की अहसास कराकर उनकी असीम दु:खों का निदान कर सकती हैं। 
     शासन - प्रशासन द्वारा भी उनकी शिक्षा स्वास्थ्य एंव रोजगार हेतु गंभीरतापूर्वक कार्य कर रहे।  परन्तु इतना ही   पर्याप्त नहीं बल्कि  आम जनमानस में भी चेतना जागृत कराना होगा कि यह हमारे  समाज का अभिन्न अंग हैं। और उनसे  सहज - सरल  व्यवहार करना हैं। तभी दु:खो की दरिया से इस समुदाय को  बाहर निकाल सकते हैं। 
             बेहद प्रतिभाशाली और कलावंत समुदाय को  मौका देना चाहिए बेहतर प्रदर्शन के लिए।  किसी क्षेत्र में सेवाएँ देने के लिए यह समुदाय अब सहज रुप से सामने आने लगे हैं ... यह स्वागतेय पहल हैं।

मंत्री नकूल देव ढ़ीढ़ी

#anilbhatpahari 

पृथक छत्तीसगढ़ हेतु   प्रथम जेल यात्री : "क्रांति द्रष्टा मंत्री नकूल देव ढीढी"
              महान मानवतावादी विचारक और छत्तीसगढ़ मे गुरु घासीदास के सिद्धान्त "मनखे मनखे एक" को व्यवहारिक धरातल मे स्थापित करने मे मह्ती भूमिका निभाने वाले क्रान्तिद्रष्टा मंत्री नकूल ढीढी का जन्म १२ अप्रेल १९१४ मे भोरिन्ग महासमुन्द मे हुआ।आपके  कारण ही  सर्व समाज मे पौनी पसारी राउत  नाई धोबी  प्रथा का प्रभावी  प्रचलन  हुआ ।पारंपरिक शोषण वृत्ति के जगह सेलुन लाण्ड्री  जैसे नवीन व्यवसाय शहरो और बडे ग्रामो मे खुले और ये श्रमिक जातियां सांमती शोषण से बचे‌
परित्यक्ता विधवा विवाह हेतु  चूडी पहनाई  और बरंडी जैसे गुरु घासीदास प्रवर्तीत  नवीन प्रथाओ का प्रभावी रुप मे प्रचार प्रसार कर महिलाओ की दयनीय दशा को सुधारने मे अभूतपूर्व  कार्य किया।अपने पुश्तैनी अस्सी एकड जमीन और उसके आय को सामाज सेवा को समर्पित कर दिये।
   नकूल देव ढीढी एक ऐसे समाज सुधारक व सेवक रहे जो पद प्रतिष्ठा के लिए नही बल्कि समाज के  स्वाभिमान व आत्मसम्मान  के लिए  आजीवन संघर्ष किया।
हिन्दू और सतनामी‌ छग के गांवो मे समान रुप से बसे है इसके बावजूद दोनो के बीच एक सांस्कृतिक रुप से स्पष्ट विभाजन देखे जा सकते है।किसी भी गांव मे भले जातिय बसाहट हो पर अधिकतर सभी जातिया चाहे वह ब्राह्मण छ्त्री वैश्य या शुद्र मे अनगिनत पेशेवर जातिया यथा  तेली ,तमोली, कुरमी कोयरी,  राउत  मरार, महार  ,लुहार , चमार नाई, धोबी, गाडा मेहतर  मे भोलिया रौतिया  मेहर  मोची  सभी एक साथ एक दुसरे से अभिन्न रुप. से आबद्ध है।और वे   अनेक भिन्नता के बावजूद हिन्दू है।क्योकि उन सबके कुल देवता अलग अलग है। पर सारे देवी- देवता त्रिदेव के अधीन बहु देवोपासना  है। इन सबसे अल्हदा
एकेश्वरवाद सतनाम सतपुरस के अवधारणा से सहज कर्मयोग पर आधारित सतनाम धर्म. और इसके अनुयायी सतनामी है।जो समानता और गुण के आधार पर संगठित है। मनखे मनखे एक जैसे उदात्य सिद्धान्त और जाति वर्ग विहिन समाज जो सबको अपने मे सागर सदृश्य समाहार करते है।   इसलिए जात पात भेदभाव उच् नीच वाले हिन्दू लोग  इन से द्वेष जनित व्यवहार करते है  और मेलजोल से इसलिए बचते है कि सतनामी न बना  ले।अपने मे समा न ले !
मंत्री जी   हिन्दुओ के  इन्ही वर्जनाओ और द्वेषभाव के विरुद्ध शंखनाद करने वाले कुशल क्रांतिकारी योद्धा थे।
   उनका संग्राम संवैधानिक रहे। वे दो टूक साफ साफ कहते - यदि हमे हिन्दू मानते है तो पौनी पसारी की सुविधा  मिले।यदि नही तो दोषी को कानुन सजा दे। या तो हिन्दू से हमे  पृथक करे। उनके भाषण तर्क सम्मत सरल व हृदयग्राही थे।वे तत्कालीन सभी राजनेताओ मे मुखर थे।समाज कल्याण हेतु अनगिनत मुकदमे लडे।
फलस्वरुप वे  जनमानस के हृदय में राज करते आ  रहे है। उनके जाने के बाद  समाज उन्हे मंत्री  और दादा जैसे आत्मीय शब्दो से संबोधित करते है।
  ईसाई और बौद्ध धर्म की सिद्धान्त और विशेषताओ ने उन्हे प्रभावित किया। आचरण गत शुद्धता और सादा जीवन उच्च विचार ,परोपकार विरासत से उन्हे सतनाम से मिला ।फलस्वरुप उनके व्यक्तित्व एक युग द्रष्टा संत सदृश्य रहे।सतनामी समाज मे वे कुशल प्रबंधक, जंयती मेले जैसे वृहत बडे  आयोजन 
कर्ता के रुप मे विख्यात. थे।
१९३० महज सोलह वर्ष के उम्र में आपने खेलुराम और महन्त बरनू कोसरिया के साथ तमोरा महासमुन्द  जंगल सत्याग्रह में भाग लेकर गिरफ़्तार हुए। अपने 
गांव  भोरिंग मे उत्साही नवयुवको के साथ मिलकर रामलीला का मंचन करते रावण का अभिनय करते और बेहतरीन पारंपरिक  मंगल भजन पंथी  संकीर्तन भी करते। पहले- पहल कांग्रेस व गांधी के प्रभाव में रहे गांधीवादी ईसाई पादरी एस डी एम सिन्ह जो गुरुकुल कांगडी के संचालक थे के प्रभाव से आपने रामलीला के जगह सामाजिक चेतना लाने हेतु १९३६ - १९३८ में  गुरु घासीदास जंयती व संकीर्तन आरंभ कर परिछेत्र मे प्रसिद्धी प्राप्त किए । १९४२ अग्रेज भारत छोडो आन्दोलन में वे अपने साथियों सहित भाग लिए। इसी दरम्यान वे कुछ सडयंत्रियो ने  धर्मगुरु मुक्तावन दास को  हत्या के  झुठी मुकदमा में फसा कर जेल भिजवा दिये उसके लिए संधर्ष किए और डा अम्बेडकर के प्रतिनिधि वकील बाबू हरिदास आवडे से संपर्क कर डा को पैरवी के लिए तैय्यार करवाए और बा इज्जत बरी करवाए। इस तरह संपूर्ण सतनामी जगत में वे विख्यात हुए।आगे चलकर आपने   डा अम्बेडकर के शेड्युल कास्ट फेडरेशन  से जुडकर आजीवन उनके मिशन को गतिमान रखे आप आर पी आई. के संस्थापक सदस्य रहे। म प्र. गठन के पूर्व से ही सीपी एण्ड बरार के समय १९५१ में पृथक छत्तीसगढ़ के परिकल्पना कर अपनी बाते रखते रहे।
   आर पी आई के बैंगलोर अधिवेशन मे पृथक छत्तीसगढ हेतु आवाज बुलंद किए इनके लिए  आन्दोलन चलाए व १७ अक्टबुर १९७२ से सत्याग्रह  मे बैठे १० दिन बाद २७ अक्टूबर  १९७२ को गिरफ्तार कर लिए गये इस तरह वे   प्रथम जेल यात्री रहे।अपने १९ सहयोगी सहित जेल यात्रा करके वे मिशाल कायम किए। उनके अनन्य सहयोगियो मे नन्दूनारायण भतपहरी, रामचरण, इन्द्रदेव टंडन, सुखरु प्रसाद बंजारे  र म ई फत्तेलाल ,रामलाल, किशुन सुकालदास भतपहरी धनिराम सखाराम चन्द्रबलि किशुन  गेन्डरे धनसिह भिछु रामेश्वरम ,कोन्दा प्रसाद बधेल,.मनोहरलाल. भीषम्देवढीढी, बाबु हरिदास आवडे  खेलुराम टंडन दौव्वा आवडे, महंत बरनु कोसरिया , जैसे सैकडो प्रतिबद्ध सहयोगी के साथ सामाजिक जागरण के कार्य मे संल्गन रहे डा अम्बेडकर के विश्वस्त लोगो में आपका नाम रहे।आपने  विदर्भ वादी नेता  बी डी खोब्रागढे दादासाहेब रुपवते  आर एस गव ई देवीदास वासनिक जीएस कट्टी समता सैनिक दल के अध्यक्ष ए आर बाली प्रख्यात बौद्ध भिछु भदन्त आनंद कौल्यायन इत्यादि के साथ मिलकर डा अम्बेडकर चेतना और मिशन को आजीवन समाज में विस्तारित करते रहे।   
वे कुशल प्रवक्ता संकीर्तन कार कानुन के जानकर थे।
डा अम्बेडकर के निकटस्थ सहयोगी वे रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया के छग प्रभारी रहे और आजीवन रायपुर महासमुन्द आरंग  लोक सभा / विधान सभा चुनाव लडते बहुमुखी प्रतिभा के  धनी मंत्री जी सामाजिक चेतना को गतिमान करते हुये १६ अगस्त १९७५ को सतलोक प्रयाण कर गये।
ऐसे क्रान्ति द्रष्टा और युग सचेतक महापुरुष मंत्री दादा  नकुलदेव ढीढी के पूण्यतिथि 
अवसर  पर सादर श्रद्धांजलि उन्हें शत शत नमन -----
    
जय जय हो मंत्री नकुल देव ढीढी 
तोर पूजा करही पीढी पीढी ।।

       सत श्री सतनाम
डा. अनिल भतपहरी सी ११ ऊंजियार सदन आदर्श नगर अमलीडीह रायपुर छग 
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