Saturday, November 9, 2019

क्या सतनाम ईश्वर है?

क्या सतनाम ईश्वर हैं ?
सत्नाम प्रसाद संभु अबिनासी।साजु अमंगल मंगल रासी।
सुक सनकादि सिद्धमुनि जोगी।सत्नाम प्रसाद ब्रम्हसुख भोगी।।
तुलसी कृत यह चौपाई का आरंभ नाम से हैं - यथा नाम प्रसाद संभु अबिनासी .... हमें लगता हैं कि यह केवल नाम नही होगा। यदि नाम हैं तो वह क्या और किसकी नाम होन्गे?
सिव किस नाम का जाप किए ? और पार्वती को अमर कथा सुनाए वह किस नाम से आरंभ हुआ होगा? प्रायः अधिकतर विद्वान  उसे ( शिव को )  सत्य स्वरुप कहते यानि की वह सत्य के अराधक थे ।शैव मत के नाथ और सतनाम संस्कृति में सिद्ध सहजयोगियो ने  सतपुरुष या  निरंजन या काल निरंजन के आराधक बताते हैं ।यह बात तुलसी के पूर्व से ही प्रचलन में रहा और वे इस तथ्य या सतनाम  से भलीभांति परिचित भी रहे। फिर सीधा सीधा रामचरितमानस की इस चौपाई में सतनाम क्यों नहीं लिख सके? या लिखना मुनासिब नहीं समझा? यह जरुर विचारणीय है।
   हमें लगता हैं कि यह दो कारणो से हुआ होगा।पहला कि सतनाम के आराधक निर्गुण मत वाले सिद्ध नाथ  संत कवि उनके परवर्ती बुद्ध  सहरपा गोरखनाथ मत्सेन्द्रनाथ कबीर रैदास इत्यादि  थे और वे  सतनाम के साधक और प्रचारक थे उनमे अधिकतर अवतार वाद  वेद शास्त्र आदि के प्रतिरोधी थे।अत: वे सीधा सीधा उनके द्वारा व्यहृत  सतनाम का उल्लेख नहीं किया।दूसरा कि सत्नाम प्रसाद..लिखते तो चौपाई की मात्रा १६ से १८ हो जाते और काव्य शिल्प से बाहर हो जाते ।
    अत: वे नाम लिखकर काम चलाये।परन्तु व्याख्या करने पर यह नाम रामनाम तो हो ही नही सकते क्योंकि तब शिव कैसे रामनाम जपते?जबकि राम का जन्म नही हुआ था। हरिनाम भी नही क्योंकि यह उनके भाई विष्णु के लिए प्रयुक्त होते।वे सतनाम के उपासक थे।
   बाहरहाल यह नाम केवल सतनाम ही हैं जिसके आराधक बडे-बडे संत गुरु महात्मा सिद्ध- मुनी योगी  तपस्वी थे और उनकी साधना से वे समर्थवान हुए। सतनाम की राह पर चलने से साधक को एक अप्रतिम सुखानुभूति होते हैं। उसे तुलसी ने ब्रह्मसुख कहे हैं। मतलब सतनाम ब्रम्हसुख प्रदान करने वाले कारक हैं ।इस तरह वे नाम या सतनाम  को सीधा सीधा ईश्वरीय तत्व से जोडे।  जैसा कि संतो गुरुओ सिद्धो नाथो ने सतनाम को ही ईश्वर खुदा करतार मालिक सतपुरुष  स्वरुप में मानकर ही सिद्धियाँ प्राप्त की  अपनी बाते जनमानस के बीच लाए।
सत्य ही ईश्वर हैं आजकल यह श्लोगन बहुत ही लोकप्रिय हो गये हैं।
  इस तरह हम देखते है कि प्राचीन काल से ही सतनाम सत्यनाम सचुनाम सच्चनाम सतिनाम सत्तनाम शतनाम की सुमिरन जाप और साधना पद्धतियां रही है।
पर क्या सतनाम ईश्वर हैं सवाल यह हैं? ...यदि नही तब वह क्या है?और उनकी साधनाए प्रचार प्रसार बुद्ध से लेकर गुरु घासी बाबा तक किसलिए आम जनमानस के बीच किए गये... और वे किसे प्राप्त करने  पथ प्रदर्शक हुए।सतनाम की प्रसाद या कृपा से  ब्रम्हसुख मिलते हैं,जिसे परमानंद मानते हैं।मतलब ब्रम्ह या ईश्वर से अप्रतिम व श्रेष्ठ है।
     सतनाम
डा. अनिल भतपहरी
हंसा अकेला सतनाम - संकीर्तन जुनवानी

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