Saturday, February 22, 2025

लोक नाट्य एवं नाचा गम्मत की दुर्गति

#anilbhattcg 

प्रदेश की समृद्ध नाचा गम्मत और नाट्यकला की दुर्गति 

छत्तीसगढ़ में अभिनय कला की समृद्ध परम्परा रहीं हैं.
संभवतः देश की सबसे प्राचीन नाट्य शाला सीता बेंगरा सरगुजा हमारे प्रदेश में हैं.जिसे कलात्मक ढंग से बनाये गए है. देखा जाय तो प्रत्येक बड़े ग्रामों में बड़ा चौरा होते थे जिस पर चाँदनी लगाकर ओपन थिएटर या opera hause जैसा रात -रात भर मनोरंजक और ज्ञान वर्धक  नृत्य गीत नाट्य अभिनय युक्त नाचा कार्यक्रम होते थे. हमारे खरीखा दाड़ विशाल एंटीबायटिक मैदान हैं जहाँ कबड्डी खोखो और करमा पंथी  सुआ जैसे सामूहिक नृत्य गान होते मड़ाई  जगाते रहस बेड़ा सजाते हैं.इस तरह से देखें तो हर गाँव में नाचा गम्मत के रूप में मनोरंजक और प्रेरक पंडवानी भरथरी आल्हा रसालू, बांस गीतों अहिमन,केवला,कुंवर अछरिया, लोरीकचंदा, बड़ी बड़ी कथानक हैं  रात रात भर चौदस पुन्नी में मंगल भजन साधु अखड़ा चौका आरती थे जिससे लोक जीवन  तमाम आभाव और साधन विहीन हो सुखी एवं समरिद्ध थे .लगभग 50 वर्ष पूर्व सुदूर ग्राम्य अंचल में हमनें ढोला मारु,शीत बसंत,दौना मांजर,चंदैनी से लेकर नाचा गम्मत में गुरु बटवारा,परीक्षा,अनेक प्रेम और सत्यकथा पर आधारित कौमिक कथाओ का मंचन दानी दरुवान, जेठू पकला, हीरा राजू चम्पा बरसन मते लखन कनकी,रायखेड़ा, फुडहर नाचा साज, चंदैनी गोंदा कारी चरणदास चोर,  एवं पिताश्री सतलोकी सुकाल दास भतपहरी के नवरंग नाट्य कला मंच से हाय रे नशा,राह के फूल,गवाईहा,मोला गुरु बनई लेते,चांदी के पहाड़ जैसे देखें और खेलते बड़े हुए हैं.1990 के  बाद TV वीडिओ वीसीआर,CD आने गाँव में नाचा / लोक मंच लगभग महगी बजट और अनेक तरह के झंझट के चलते खत्म हो गए.  छत्तीसगढी गीतों से सजी आर्केस्ट्रा लोक मंच पर चला पर tv ,video ki अश्लीलता  के चलते लोकमंच आर्केस्ट्रा में  द्वी अर्थी गीतों और फुहड़ता चलने लगा इसलिए भी राम -कृष्ण लीला,रामायण,भागवत कथाएँ जो उप बिहार से आयातीत  हैं इन सबका चलन बढ़ गया. सतनामयन कबीर सत्संग प्रवचन  भी चलने लगा. भले धर्म कर्म हो न हो पर इन्ही में अब मनोरंजन,भोग भंडारा आदि होने लगा और उत्सव धर्मी लोग इनमें उन्मत्त भी हो गए.इस तरह यहॉं की इस विशुद्ध लोकरंजन नाट्य गम्मत कलाएं के धार्मिक आयोजन नें जगह लें लिए हैं.आज सुविधाएं और आर्थिक समृद्धि के बाद भी निरुत्साह और व्यक्ति एकान्तिक तनाव ग्रस्त हैं.राजनीति द्वेष भाव और धर्म कर्म की प्रदर्शन में होड़ और प्रतिस्पर्धा नें तनाव ग्रस्त और दुःखी कर दिए हैं.सबकी होठों से निश्छल हसीं गायब हैं चंद शातिरों की कुटील मुस्कान और अट्टहास नें छीन लिए हैं.क्या इसी तरह सुखी एवं समृद्ध समाज और राष्ट्र बना पाएंगे?
.      देखें तो दुःख में कटटल के हसने हसाने का मौका देने वाले नाचा गम्मत और नाटक लगभग बिदा हो गए हैं.केवल शासकीय आयोजन में एक आधा घंटे के लिए प्रस्तुति रह गए और वे भी अनुदान के भरोसे से चल रहें हैं.कोई आयोजक नहीं और न ही कोई दर्शक श्रोता रह गए.मोबाईल नें सार्वजनिक प्रदर्शन कला को बुरी तरह खत्म कर दिए हैं. शासन  प्रशासन के साथ -साथ आयोजको सभा समितियों  और हमारे कलावंत बुद्धिजीवियों,रंगकर्मियों, लोक कलाकारों को प्रदेश की समृद्ध नाचा गम्मत,नाट्य रंगमंच को बचाने सार्थक पहल करना चाहिए.

डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514

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