Tuesday, June 1, 2021

भाषा उत्पत्ति के सिद्धान्त

[9/2019, 18:07] anilbhatpahari: कोई भी भाषा होय  सदा सरलता से जटिलता के ओर जात्रा करथे। काबर कि मनखे के जब बक्का फुटिस तब ओहर बडे बडे संयुक्ताक्षर मन क इसे उच्चरित कर सकही ? धीरे धीरे सरल सरल  ध्वनि  से अनवरत अभ्यास से संतुक्त स्वर व्यंजन आदि मिल के शब्द बनिस होही अउ फेर भाषा के विकास होइस होही ।
कत्कोन गुणवंता मन नदिया कस उद्गम ले समंदर तक जाय के रुपक बांधथे त कत्कोन मन नदियाँ के उलट बहुत कन मिंझरे संधरे  हर धीरे- धीरे छनत- छुनात विशुद्ध रुप में उद्गम कस फरिल हो जथे कथे । इही मान्यता मन प्रमुखतः  मं दु - विचार धारा हवे 
एक जो दैवी कृपा जोन ईश्वरीय विधान मान ले गय हे।
दूसर जोन विकासवादी सिद्धांत हवय । एखर सिवा अउ ५-७ सिद्धांत हवे फेर ओमन ल उक्त दोनो सिद्धान्त ‌के सहचर के रुप में देखे जा सकत हे। असल में ‌एहर भाषा विज्ञान के आधार स्तंभ आय । एक भाषा विज्ञानी हर विकास वाद ल ही मानथे अउ उही हर अध्ययन अध्यापन के विषय होथे । कोनो भी अध्ययन ह समष्टि से व्यष्टि याने स्थूल से सूक्ष्म तक जाथे‌।अध्येता मन ल बहुत बारीक अउ महिन जिनिस के जानकारी रहिथे। 
ज इसे कि  विज्ञान में  परमाणु वायरस बैक्टीरिया के मानिंद सुक्ष्मतम चीज के जानकारी भाषा विज्ञान म भी होथे कि कोनो शब्द ओकर अक्षर ओकर ध्वनि मानव मुख से क इसे स्पर्श करत कहां से निकलथे स्वर उतार चढाव मंद्र तीव्र अवरोह आरोह से क इसे अर्थ वाले शब्द वर्ण आदि के भाव बोध श्रोता ल होथे उन ल का का प्रभाव परथे .उवा उवा ....
छत्तीसगढ़ी सहित तमाम लोक भाषा हर  सहज सरल रुप‌ म ही रहिथे 
     धीरे -धीरे उनमन  परिमार्जित / परवर्धित  होत सुघ्घर रुप घर लेथय।  बोली से विभाषा से भाषा के रुप मे विकसित होथे।
ज्ञानी -गुणी मन उन ल अउ बने सजा -धजा के रीति -नीति सहित   व्याकरण सम्मत  कर लेथय। उनकर  ये क्रिया ल प्रसंस्करण कहे जाथे जोन प्रोसेस से बनथे ज इसे दो तीन शब्द ल जोड़ के नवा शब्द अउ आधु पाछु उपसर्ग प्रतत्य लगा के नवा शब्द बनाना ।  बाकि सामान्य व्याकरण तो हर बोली ल समटाय रहिथे ।
  प्राय: प्रसंस्कृत भाषा हर राज काज के भाषा बन के समृद्ध  भाषा के रुप मं प्रतिष्ठित हवे। ओमा  साहित्य सृजन अउ लिपि के आविष्कार के बाद लेखन भी होना आरम्भ होइस। जेन जतेक प्राचीन अउ प्रचलन में ओहर ओतकेच समृद्ध अउ ग्राह्य होते ग इन एखर मुख्य कारण राज संरक्षण भी होथे। 
  विकासवाद सिद्धान्त म धीरे धीरे ही अगढता ह सुगढता म बदलथे । पहिलीच ल कोनो समरथ अउ सुघर न इ सिरजे रहय।एक प्रक्रिया के तहत होथे।
    हमर देश धार्मिक देश आय अउ आजतक ये दृढ मान्यता हवय कि ये जगत के संचालन सर्व शक्तिमान ईश्वर  करत हे उन ईश्वर  के तको घर परिवार स्वजन हव अउ उनकर बोली भाषा हे जेन संस्कृत के नाव ले जाने जाथे  । 
ते पाय के संस्कृत ल देववाणी कहिथे अउ ओकर ग्रंथ या शास्त्र ल वेद कहे माने गे हवय। ओला एकरे सेती अपौरुषेय कहे जाथे।
उहीच रकम के कुरान शरीफ  अउ ओकर भाषा ल आसमानी आतये मान लिए गे हवे  ओल्ड टेस्टामेंट बाइबिल के तको मान्यता हवे।  क्लासिक या प्राचीन  शास्त्रीय भाषा   मन ल राजतंत्र के मान्यता हवे अउ ओकरे सेती सदियों से ओकर संरक्षण- संवर्धन चले आत हवय। ये लोक मान्यताएँ और ईश्वरीय विधान मं आबद्ध हवय । ताकि उंकर ऊपर श्रद्धा अउ आस्था कायम रहय।
      त दुसर डहन विकासवाद के अवधारणा ले आधुनिकतम विचारधारा हवय जोन वैज्ञानिक चिन्तन धारा ये ।

विकास वाद के मतलब वैज्ञानिक अवधारणा होथे । ज इसे चार्ल्स डारबिन ह मनखे के उत्पत्ति के सिद्धान्त बताइन ।  
       जबकि धर्म मत वाले मन कोनो ईश्वर के कल्पना करके ओकर कृपा से सिरजाय कहिन ओहर दैवी सिद्धान्त आय । जोन हर  केवल जनश्रुति अउ आस्था वाला मामला ये। एमा कोई वैज्ञानिकता न इये न तर्क के कसौटी म खरा उतरथे।

जबकि विकास वाद  क इसे धीरे -धीरे मानव प्रजाति हर अपन आदिम जीवन से विकास करत इहा तक हजारों साल के यात्रा म इहा आइन । ओमा उन मन खाए पीए जिनिस के संग भाषा बोली धन दोगानी देव धामी तीर्थ ब्रत सब के ईजाद करिन अउ  आदिम जंगली या एकाकी जीवन ल.  बहुआयामी करिन ।
ज्ञान विज्ञान कला संस्कृति सबके विकास करिन ।
   ओला कोनो हुदुक ल एव मस्तु कहिके न इ दिन भलुक जोन हवय ओला सतत अपन पीढ़ी दर पीढ़ी बड परिश्रम करके अर्जित करिन ।
येमा जो भी  संप्रभुता या ऐश्वर्य विभिन्न क्षेत्र म दिखथय ओ हर एक सतत प्रक्रिया से होत चले आत हे अउ जो हो चूके हे उही अंतिम श्रेष्ठतम न इ ये भलुक आगे अउ बेहतर अउ श्रेष्ठतम हो सकते ऐसे संभावना विद्यमान हे ...
     ये लोगन अपन -अपन स्वभाव रुचि अउ विवेक अनुसार अंगीकार कर सकथे  या मान- समझ सकथे।
   जय छत्तीसगढ़

- डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

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