सतनामी तो हिन्दू ही है।
महंत नयन दास महिलांग के कृषि संस्कृति के अभिन्न अंग पशुधन के संरछण हेतु चलाए गये गोवध आन्दोलन से सतनामियों में नेतृत्व छमता का विकास हुआ।
फलस्वरुप तत्कालीन( १९२०-३०) कांग्रेस नेतृत्व सतनामियों आजादी के आन्दोलन मे सम्मलित करने एंव मुख्यधारा मे लाने ७२ संत महंतो को गुरु अगम दास के नेतृत्व मे सम्मानित किए ।
इस तरह सतनामियों का भारतीय राजनीति मे पदार्पण हुआ।
जनेऊ करण का कथित उच्च जातियों (ब्राह्मणों और कथित सवर्णों) के एकाधिकार को सतनामियों ने ही अपनी जीवटता व सात्विक खान पान रहन सहन से तोड़ा यह भी कम बात नही!
बहुत सी बातें है और युगीन प्रवाह मे सामूहिक नेतृत्व व विशाल काय समाज का संचालन वह भी अलग अलग संस्कृति व मान्यताओं मे विभक्त है उनमें सामंजस्य बिठाए रखना बड़ी चुनौति है।
आज हम अपने ही घर परिवार को एक नही रख पाते ।ऐसी विषम परिस्थितियों मे गुरु घासीदास सतनाम जैतखाम पालो और गुरु वंशज गिरौदपुरी तेलासी भंडार खडुआ बोडसरा बाराडेरा हमें परस्पर जोडकर रखे हुए है।
भले हम सब विभिन्न राजनैतिक पार्टियों मतो विचारों और खेमों मे बटे है ।और यह सब होना स्वभाविक है।फिर भी गुरुघासीबाबा सतनाम जैतखाम और गिरौद भंडार के नाम पर सभी परिछेत्र के सतनामी एक है।और वे सब मिलकर सतनाम पंथ को धर्म के रुप में प्रतिष्ठापित कराने अपने स्तर पर लगे हुए है।
मंजिल एक है उसे अर्जित करने के तरीके अलग अलग है। मतभेद है और रहेन्गे पर मनभेद नही हो बस इनका ध्यान रखे। संयम भाषा शैली और परस्पर एक दूसरे को सम्मान दे तब सभी एकमेव होन्गे ।
गुरु घासीदास १७५६-१८५० का कालखंड ले तो महज १६८-७० वर्ष हो रहे है।
गुरुघासीदास के समकालीन हम सबके पूर्वज रहे है। भंडारपुरी के समीप हमारे ग्राम जुनवानी है और हमारे पूर्वज ऊंजियार बबा जिनके दादा पडदादा के पास चंदखुरी व सिरपुर परिछेत्र मे ३+२ = ५ गांव गोटीडीह बरछा जुनवानी उजितपुर सिरपुर थे जो बौद्ध कालीन शुरवीर भट्ट प्रहरी राज वंशीय लोग थे । जिनके घर द्वार कपाट दरवाजे मे बेहतरीन नक्क्शिया है पत्थर के तराशे हुए २-३ तल्ला हवेली और किलानुमा घरद्वार रहे गुरुघासीदास के समकालीन रहे है।तेलासी जुनवानी अमसेना डुम्हा कोड़ापार भैसमुंडी सतनामी बाहुल्य साधन सछम लोगों के गांव है।और इन्ही गांव के लोग जो परस्पर रिश्तेदारी मे आबद्ध सुमत सुन्ता मे रहे ने गुरु को जो यहां गिरौदपुरी से निर्वासित होकर आये थे को यहां बसाए ।उनकी सदप्रवृत्तियो की कहानियां और गुरुवंशजों गुरुओ की प्रदेय के सब साछी है।उन जनश्रुतियों का लेखन हुआ है जो वर्तमान में सतनाम साहित्य के नाम से जाने समझे जाते है। बाहरहाल लेखन एक सतत प्रक्रिया है ।और वह चलता रहेगा।बेहतर से बेहतर चीजे आते ही रहेन्गे .... हम सब और भी अधिक उन्नत और प्रभावशाली बने तथा मिलजुल कर रहे । तथा सतत अध्ययन अन्वेषण वृत्ति अपनाए ....
किसी भी धर्म कर्म के आंतरिक बुराई से जो लोग सबसे अधिक उत्पीडित होते है वही उनमें आमूल चूल परिवर्तन की बाते करते है।जन जागरण या आन्दोलन आदि करते है। गुरुघासीदास हिन्दू ही थे इसलिए जगन्नाथ गये ... मस्जिद स्तुप गिरिजाघर नही गये बल्कि शाक्त मत के देवी मंदिरों की बलिप्रथा रोके .... सत्संग प्रवचन रामत रावटी से सतनाम जागरण चलाए और धर्म कर्म से बहिष्कृत जनो और स्वेच्छा से शरणागत लोगो को नाम पान देकर सतनामी बनाए।
समकालीन समय राजतंत्र का था और धार्मिक बुराई चरमोत्कर्ष थे।राजतंत्र के विरुद्ध एक अकेला लड़ नही सकते फलस्वरुप धार्मिक बुराई के विरुद्ध जनजागरण चलाए .... और जब लोग उन नव दर्शन से प्रेरित हुए तो अनुयाई बनते गये।इस तरह छत्तीसगढ के सर जमी पर धार्मिक क्रांति एक महान दार्शनिक तपस्वी व समर्थ गुरु द्वारा हुआ। लोग श्रद्धा व आस्था से जुड़ने लगे....समर्पित अनुयाईयों की बढ़ती संख्या और प्रभाव देते उनके पुत्र को राजा बनाए गांव समर्पित किए ।
फलस्वरुप उन वैभव से समाज मे स्वाभिमान भी आए।
सतनाम
Wednesday, October 24, 2018
सतनामी हिन्दू ही था
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