"आनंद "
उस दिन आनंद उदास था इसलिए थोड़ी खुशियां तलाशने शहर की सबसे रौनक व समृद्ध सदर बाजार यु ही घुमने निकल पड़े ।शायद सजे -धजे खिलखिलाते चेहरों को देख मन की उदासी दूर हो। वह देर तक घुमते रहा शानदार लकदक करते जेवर और रेशमी परिधान पहने स्त्री बच्चे और उनके आवभगत मे आतुर कमाने -खाने मे दछ अपने परिवार के लिए खुशियां खरीरदते पुरुषों की भीड़ देख कुछ अच्छा लगने भी लगा था।
पर वह अच्छाई पल मे उस इत्र की तरह उड़ गये जिन्हे सींच कर लोग इन सौदागरों की तिजोरियां भरने आते है।
हर कोई जहां असंतुष्ट/ बेकरार है और -और पाने के लिए ..... वे निराश घर की ओर लौटने लगे कि देखा एक मैली कुचैली फटी फ्राक पहिने ७-८ साल की बालिका उनके पास आकर कही - "देना एकाद रुपया भुख लागत हे "
पता नही कब उनके हाथ जेब मे पैसे टटोलने लगे पर यह क्या वे जल्दबाजी में बिना पैसे रखे कल के उतारे टी शर्ट पहिन कर आ गये थे ... अंदर धक! से हुआ ..पर उस भूखी भोली सी लड़की की आतुर याचक आखें उन्हे भीतर से भेदने लगे ... कुछ पल पास ठेले वाले से एक चाट का आर्डर दे उस बालिका को दिए ... बालिका खुशी से झुम उठी खाने मे लग गई ..वे ठेले वाले से विनम्रतापूर्वक कहने लगे इनके पैसे आधे धंटे बाद या कल मुझसे ले लेना या ये मेरे धड़ी है यह रख लो ! अभी घर से आ रहा हू पैसा रखने भूल गया ... ठेले वाले उनकी दरियादिली देखते कहने लगे क्या भैय्या भगे थोड़े जा रहे है .!
वे जल्दी उऋण होने घर की ओर लपके ... शायद उनकी अवसाद अब दूर हो चुके थे
डां अनिल भतपहरी
No comments:
Post a Comment